शहजादा सलीम शिकार पर निकले हुए थे। शिकार पे इसलिये गए थे क्यों कि अब्बा हुज़ूर ने किसी और को उनके लिए पसंद कर रखा था। सलीम अनार की याद मे , और अपनी उजड़ी मोहब्बत के नाम पे पहले गाते हैं ....
ये होगा सितम हमने पहले ना जाना, बना भी ना था जल गया आशियाना
कहाँ अब मोहब्बत के मारे रहेंगे .....
अब सलीम के आँखों मे आँसू आ जाते है.... और उन्हें अनार कि मासूम मुस्कराहट याद आ जाती है, वो उसके चेहरा का नूर, वो दिल लूटने वाली कशिश, वो जान लेने वाली अदाएं, हाय कैसे सलीम भूल पायेगा अपनी अनारकली को, जो कि लख्त-ए-जिगर महबूबा है, जो कि उनके रूह का अहसास है, सलीम के दोनो आंखें गीली हैं, पसीने से तर-ब- तर सलीम रो पड़ता है, और उसकी जुबान से मोहब्बत का ये बेशकीमती नगमा फूट पड़ता है ---
बिछुड़ कर चले जाएँ तुमसे कहीँ, तो ये ना समझना मोहब्बत नही,
जहाँ भी रहेंगे, तुम्हारे रहेंगे ...
सलीम, इश्क से मजबूर, वहशत की कगार पे, कभी अपनी मुल्क के लिए फ़र्ज़ को याद करे, कभी ताज को, कभी अपनी पाक मोहब्बत को, जो कि सारे आलम मे तस्कीन है, दिल के टुकड़े टुकड़े कर रहे हैं। ऐसी जिन्दगी का क्या फायदा जब उसका महबूब ही उसे धोखे बाज़ समझे, दगाबाज़ कह के याद करे। सलीम मजबूर है लेकिन दगाबाज़ नही।
ज़माना अगर कुछ कहे भी तो क्या, तुम ना समझना हमें बेवफा
तुम्हारे लिए हैं, तुम्हारे रहेंगे....
तभी किसी करिश्मे से ऐसा होता है, हमारी अनारकली भी उसी जंगल मे सलीम की याद मे भटकती फिर रही है।
अकबर ने भले ही उसे चुनवाने का हुक्म दिया था, पर उसकी माँ ने कभी अकबर की जान बचायी थी, इस खातिर अनार की जान बच जाती है, बस एक शर्त पर वो सलीम की जिन्दगी से दूर, बेहद दूर चली जायेगी... अनार अपनी अम्मी के साथ, इस खतरनाक जंगल मे भटक रही थी, लेकिन उसका दिल-ओ- दिमाग, होश-ओ-हवास सब अपने शहजादे के तसव्वुर मे खोया था। उसकी मोहब्बत सच्ची थी, पाक थी, वो जिन्दगी की आख़िर साँस तक भी किसी और की नही होगी, वो शहजादे के नाम पर कुर्बान हो जायेगी, और मरते मरते भी उसकी आखरी ख्वाहिश शहजादे की बरकत और हिफाज़त मे ही होगा।
ऐसे सच्चे इश्क को अल्लाह भी नही जुदा कर सकते थे, तो सलीम क्या देखता है--- ये सामने क्या अनारकली आ रही है? और मुझे पुकार रही है, ये कैसे कुदरत का करिश्मा है? ये कैसी अनोखी घड़ी है?.... अपनी आंखें पोंछ कर सलीम उसकी तरफ बला की तेज़ी से लपकता है, मानो आज क़यामत ही उन दोनो को जुदा कर पाए। अनार जो अपनी सुध बुध खो चुकी है, सलीम के बाहों पे सिमट आती है, और कहती है.....
नज़र ढूँढती थी जिसे, पा लिया है, उम्मीदों के फूलो से दामन भरा है,
ये दिन हमको सब दिन से प्यारे रहेंगे ...
दोनो, हुस्न और इश्क, मोहब्बत और इबादत, इमान और वफ़ा, जोश और मासूमियत गले मिलते हैं। ऐसा सुकून देने वाला मंजर देख कर अनार की अम्मीजान के आंखें भर आती है। वो घुटनों पर बैठ कर अल्लाह का शुक्रिया अदा करती हैं, या अल्लाह, इन मासूम आशिकों की हिफाज़त करना, ये नादान हस्तियाँ, जो की ज़माने की ठोकरों के मुगालते, ज़ख्मसार , लाचार हैं, इनका तेरे अलावा और कोई नही है दुनिया में। आमीन।
अनार इन दुआओं से मशरूफ़, बेखबर अपनी शहजादे के गले लिपट कर रो रही है... आंसू से उसका चेहरा तर ब तर हो चुका है। कपडे कैसे गंदे हो चुके हैं, मन ही मन वो शर्मसार है कि सलीम से बिछुड़ कर वो कैसे जिंदा थी, उसे मौत क्यों ना आ गयी ? हाय, सलीम कैसे दुबले हो गए है, उस बदजात कनीज़ कि खातिर उनके अश्क निकल आये हैं, वो क्यों ना मर जाये... सलीम, सलीम, आपको भी नही पता कि अनार आपकी कितनी इज़्ज़त करती है, कितना ख़याल करती है, अगर कोई पूछे के पूरी कायनात मे क्या क्या है तो, आफताब-ओ- मेहर के बजाये वो केवल सलीम का नाम लेगी। सलीम, आपको नही पता है हमारे दिल मे क्या चल रहा है....
कहूं क्या मेरे दिल का अरमान क्या है, ये बस तुम्हे चूमना चाहता है,
कहाँ तक भला जीं को मारे रहेंगे .....
अनार के चहरे पे वोही पुरानी कातिल मुस्कान आ गयी है । वो ही अदाएं, वो ही गुश्ताखियाँ, वो ही शोखियां, कहाँ चली गयी थी तुम अनार अपने सलीम को छोड़ कर... तुम्हे पता नही कि सलीम तुम्हारे बग़ैर नही जी सकता। तुम रोती क्यों हो? तुम्हारी हँसी के लिए पूरे मुल्क मे आग लगा सकता है, दरिया को सोख सकता है, आसामाँ का सीना चीर सकता है.... बोलो अनार क्यों नही हस्ती तुम।
खुदा के वास्ते जहाँपनाह, आपसे हमारी गुज़ारिश है, ऐसा कुछ ना करें, गरीब कि दरख्वास्त है, हमें तो बस दो घड़ी आपका साथ चाहिऐ, आपकी हसीं ही मेरी मंज़िल, आपका सुकून ही मेरा मक्का....
सहारा मिले जो ग़र जो तुम्हारी हँसी का, भुला देंगे हम सारा गम जिन्दगी का
तुम्हारे लिए हैं, तुम्हारे रहेंगे...
होनी को कुछ और ही मंज़ूर था, जहाँपनाह अकबर को अपने बेटे पर यकीन ना था। उन्हें ये भी शक था कि ये सलीम फिर से अनार से मिलाने कि कोशिश करेगा।
अगर ये दास्ताँ किसी इतिहासकार ने लिखी होती, तो वो किसी दूसरी तरह किस्सा खतम करता। लेकिन ये हमारी कहानी है, तो हम ऐसे खतम करेंगे...
अकबर ने बजाये अपने सिपहसालार के, खुद अनार और उसकी अम्मी का पीछा किया। और अनार को सलीम कि बाहों मे देख कर उनका ख़ून खुल उठा।
अकबर गरजा, "शेखूं, तुम्हारी ये मजाल कि तुम हमारी हुकूमत के बाग़ी बनो, इस कनीज़ को हिंदुस्तान कि रानी बनाओ।"
"अब्बा हुज़ूर, अब हमारी मोहब्बत को क़यामत ही जुदा कर सकती है। अपकी ताकत नही । आप बेशक हमारी जान ले ले, हम एक दुसरे से अलग नही होंगे॥"
कहानी बिल्कुल वैसी होनी चाहिऐ कि जो हो सके, हम कभी वैसे कहानी नही कहेंगे जिसके होने पे हमें भी संदेह हो। फिर क्या था, अकबर ने अपना निशाना साधा और एक तीर चलाया..... ये तीर, हुकूमत के बाग़ी के कलेजे मे जा उतरा।
और सलीम वहीँ, छटपटाता दम तोड़ने लगा... अनार के आंखो मे ख़ून उतर आया, उसने हिकरात भरी नज़रों से अकबर को देखा... अकबर सलीम से मुँह मोड़ कर वापस अपने किले रवाना हो गया। बच गयी अनार, तो अनार और सलीम ने अपना प्रेम गीत पूरा किया....
ना ये चांद होगा, ना तारे रहेंगे, मगर हम हमेशा तुम्हारे रहेंगे ....
बाद मे अनार सलीम के साथ ही मर गयी, या अपनी अम्मी के साथ चली गयी, ये हमें नही पता... काश कभी पता चल जाये तो अच्छा होगा...
Wednesday, August 29, 2007
Sunday, August 26, 2007
है कौन जो बिगडी हुई तकदीर सँवारे
आज सोच रहा था कि कौन कौन से गाने- तराने हैं जो कि आपको बस रुला दे। और कौन कौन सी ऐसे पंक्तिया हैं....
शायद ऐसे कुछ...
शायद ऐसे कुछ...
- तुम भी खो गए, हम भी खो गए, एक राह पर चल के दो कदम.. (वक़्त ने किया)
- एक आह भरी होगी, हमने ना सुनी होगी, जाते जाते तुमने आवाज़ तो दी होगी... (चिट्ठी ना कोई संदेश)
- आये भी ना थे खुश्क हुए आंखो मे आंसू , निकले भी ना थे लुट गए अरमान बेचारे ... (आजा मेरी बरबाद)
- जी मे आता है तेरे दामन मे सर झुका कर हम रोते रोते रहे... (तेरे बिना जिन्दगी से कोई)
- मेरे कदम जहाँ पडे सजदे किये थे यार ने... (जाने कहाँ गए वो दिन)
- मौत भी आती नही, जान भी जाती नही, दिल को ये क्या हो गया कोई शाह भाती नही ...(तुम ना जाने किस)
- मरने के बाद होगा, चर्चा तेरी गली में... (मरना तेरी गली में)
- बाबुल थी मैं तेरे नाजो की पाली, फिर क्यों हुई मैं परायी... (अब के बरस भेज)
- नाजो से पाला मैंने तुझे, मेरी लाडली ... (बाबुल के दुआएं)
- जलता ना हो कहीँ मेरा ही आशियाँ... (कैसे कोई जिए)
- एक लुटे घर पे दिया करता है दस्तक कोई... (कोई ये कैसे बताये)
- गले गले सहम सहम ... (दोस्त दोस्त ना रहा)
- है वक़्त-ए- रुखसत गले लगा लो, खतायें भी आज बख्श डालो (खुदा निगेहबान हो तुम्हारा)
- ये बिजली राख कर जायेगी तेरे प्यार कि दुनिया (कभी तनहाइयों में)
- तुने दिया हमें गम, बेमौत मर गए हम (ओ दुनिया के रखवाले )
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