कैफी आज़मी कह गए,
क्या दर्द किसी का लेगा कोई, इतना तो किसी में दर्द नही, बहते हुए आंसू और बहे, अब ऐसी तसल्ली रहने दो, या दिल की सुनो दुनिया वालो.........
मीर साहेब ने कहा था,
तुम नही फित्नासाज़ सच साहेब, शहर पुर शोर इस गुलाम से है। काश कोई तुझसा भी तुझको मिले, मुद्दा हमें इन्तेकाम से है।
मुझे तुमसे कोई शिक़ायत नही है, और शिक़ायत होगी भी क्यों... अगर तुम ऐसे निकले तो मेरी क्या गलती है..
Friday, October 26, 2007
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