Tuesday, December 11, 2007

क्या दर्द किसी का लेगा कोई?

कैफी आज़मी याद आते हैं अक्सर, क्या दर्द किसी का लेगा कोई, इतना तो किसी में दर्द नहीं। बहते हुए आँसू और बहे अब ऐसी तसल्ली रहने दो, या दिल की सुनो दुनिया वालो...

अब सवाल ये है कि किसने दर्द दिया, और वो दर्द ही था या मेरा भरम। कौन आ कर दिल दुखा जाता है, वो हम खुद ही होते हैं या कोई और। हमारे अलावा कोई और भी इस संसार में? दुनिया भर के तरीके हैं, विचार है, परिभाषा है, वाद है विवाद है। पर पता नही, हम हैं तो क्यों है?

है किसी को नही पता, नही पता, नहीं है पता... नहीं है पता

Thursday, December 6, 2007

आश्चर्य

बहुत दिनों के बाद आज भूले भटके फिर यहाँ आये। कोई हमारे ब्लोग भी पढता है, जान कर बड़ा आश्चर्य लगा। फिर डर है कि वो ही हाल न हो, बाक़ी लोगो का ब्लोग के साथ होता है। अच्छा और बुरा, उम्दा और कचरा, हम सिमट गए हैं खुद में इतना कि बाक़ी का कुछ पता है नहीं। वैचारिक शक्ति भाषा से नही, विचार से बढेगी। विचार का कोई भी माध्यम हो सकता है। ब्लोग लिखना सही नही है, को उत्तरदायित्व नहीं। अपना ढोल पीटते रहो। मैं उस राह पर नहीं चलूँगा, हालांकि मैं ये घोषित करता हूँ कि मैं इस वाद विवाद के परे हो चुका हूँ। इसमे उम्र का दोष नही, मेरी परिस्थितियों का भी नही... ये दोष केवल दोस्तोयेव्स्की का है...