कैफी आज़मी याद आते हैं अक्सर, क्या दर्द किसी का लेगा कोई, इतना तो किसी में दर्द नहीं। बहते हुए आँसू और बहे अब ऐसी तसल्ली रहने दो, या दिल की सुनो दुनिया वालो...
अब सवाल ये है कि किसने दर्द दिया, और वो दर्द ही था या मेरा भरम। कौन आ कर दिल दुखा जाता है, वो हम खुद ही होते हैं या कोई और। हमारे अलावा कोई और भी इस संसार में? दुनिया भर के तरीके हैं, विचार है, परिभाषा है, वाद है विवाद है। पर पता नही, हम हैं तो क्यों है?
है किसी को नही पता, नही पता, नहीं है पता... नहीं है पता
Tuesday, December 11, 2007
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