Sunday, June 10, 2007

नमस्कार

हुजूर,

बहुत गुस्ताख हैं हम। नाम भी रखा तो प्रेमचंद जी का। गलत किया, बहुत गलत किया। चलिये इसी बहाने किसी को तो याद आएंगे मुंशी प्रेमचंद। ये ब्लोग मानसरोवर तो नही बन सकता , इतना हमको भी मालूम है आपको भी।

गालिब साहेब कह गए थे,
हमको मालूम है जन्नत कि हकीकत लेकिन, दिल के खुश रखने को गालिब, ये ख्याल अच्छा है।

देखिए, हमको ब्लोग लिखना पसंद नही है, पर हम सोचे कि शायद कोई तो अच्छा ब्लोग लिखता होगा। जो भी हम पढे हमको अच्छा नही लगा। इसीलिये हम सोचे कि किसी को तो ऐसे लिखना चाहिऐ।

अंगरेजी में तो बहुत लोग लिखते हैं, और बहुत ज्यादा कचरा लिखते हैं इतना ज्यादा कि कोई पढ़ के सर पिट ले। हम लोग आदी हो चुके है कचरा पढने के, कचरा फिल्मे देखने के। अब समस्या यह है कि हम ये बोल के हमारे यहाँ के उन्नत निर्देशक भी बहुत ही ज्यादा बेकार मूवी बनाते हैं तो कौन सुनेगा।

हमारा स्तर "ब्लैक", "रंग दे बसंती" जैसी फिल्मो पे सीमित है जो कि बस कुंठित ही करती हैं। किसी ने सत्यजित राय के मूवी तो देखी नही, रित्विक घटक को कोई नही जानता, किसी को वी शांताराम और गुरू दत्त याद नही रहे, अब जो बच जाता है वो .... छोड़िये हम और शिक़ायत नही करेंगे... मेरे एक प्रिय बंधु ने कहा कि हिंदी मे शिक़ायत का कोई सही शब्द है ही नही... किसी को पता हो बतला देना भई लोगो...

जाने से पहले, हम बतला देना चाहेंगे कि आप हमारे बारे मे पता करने कि इच्छा नही ज़ाहिर करें... हम ऐसे ही गुमनाम ठीक है। हम इस ब्लोग के बारे मे किसी को खुद से नही बतलायेंगे... अगर किसी सज्जन को कुछ पसंद आ रह हो तो बतलाते रहिएगा।

एक बार फिर से मुंशी जी के नाम का प्रयोग करने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।

फिर मिलेंगे...

2 comments:

उन्मुक्त said...

आपको भी नमस्कार।
हिन्दी में बहुत से लोग कई सालों से चिट्ठा लिख रहें हैं और सच यह है कि बहुत उम्दा भी लिख रहे हैं।
स्वागत है आपका हिन्दी चिट्ठा जगत में।

अनुनाद सिंह said...

swaagat hai!

likhate rahiye. hindi blogging me.n achchhe log aaye.nge to apane vichaaron se ek-doosare ko laabhaanwit karenge. isase hindi jagat kii vaichaarik shakti baDhegii.